Monday, March 20, 2017

महाड़ में पानी का संघर्ष शुरू करके ब्राम्हणवाद को ही आग लगा दी।

डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी ने आज ही के दिन महाड़ में पानी का संघर्ष शुरू करके ब्राम्हणवाद को ही आग लगा दी।
 

महाड़ में ही ब्राम्हणो ने डॉ बाबासाहेब आंबेडकर और उनके अनुयायियों के ऊपर पत्थर फेंके थे।
महाड़ के मामले की केस 1927 से 1936 तक चली।बिच में ही काला राम मंदिर का संघर्ष हुआ । येवला में डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने अपने आंदोलन की व्याख्या करते हुए कहा था कि हमें मानवीय अधिकार चाहिए। ब्राम्हणो के मंदिरों में हमें जाने की जरुरी नहीं है।
येवला में धर्मान्तर की घोषणा की थी।और 21 साल बाद ब्राम्हणी धर्म को लात मारी थी।
आज ही के दिन देवेन्द्र फड़णवीस ने मुम्बई में 6 दिसम्बर 2018 को क्या क्या षड्यंत्र करना है इसकी मीटिंग की। आरएसएस के ब्राम्हण जानते है कि डॉ बाबासाहेब आंबेडकर की हत्या की है इसका अपराधबोध होता है।उन्हें यह भी पता है कि डॉ बामसेफ, भारत मुक्ति मोर्चा एवं बहुजन मुक्ति पार्टी के कारण डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी के हत्यारे एक्सपोज हो गए है। इस बात का भी उन्हें डर सताने लगा है।साथ ही भारत मुक्ति मोर्चा ने पूरे देश भर में 1 जनवरी 2018 के यादगार साल के उपलक्ष्य में यानि पेशवा ब्राम्हणो के राज के खात्मे को 200 साल पूरे होनेवाले है। इस डबल सेंच्युरी को मूलनिवासी बहुजन समाज वर्तमान पेशवाई को खत्म करने के लिए बहुजन क्रांति मोर्चा के माध्यम से तैयारी में है ।इस बात का भी डर विदेशी ब्राम्हण फड़णवीस, भागवत को डर सताने लगा है ।
चलो इस साप देवेन्द्र फड़णवीस को पैरों तले कुचलने का समय आ गया है।
बोलो 85 जय मूलनिवासी।

हमेशा याद रखें '20 मार्च 1920' को.

हमेशा याद रखें कि आज ही के दिन, '20 मार्च 1920' को, 'माणगांव परिषद' हुई थी जिसमे दोनों महांपुरष 'छत्रपति शाहू जी महाराज' तथा 'डॉ भीम राव आम्बेडकर' इकट्ठे थे //

'माणगांव परिषद के कुछ 'अँश' .→ प्रचंड नाग …… सुनो ! ‘केलवकर’, हुआ यूँ कि, “ ‘मैं’ एक बार ‘सतारा’ गया था । हमारे लिए ही भोजन का कार्यक्रम चल रहा था । भोजन ‘ब्राह्मणी’ पद्धति का था । ब्राह्मण ‘रसोइये’ भोजन तैयार कर रहे थे । खाने का समय हो चला था । ‘स्नान’ कर ‘मैं’ यह देखने के लिए ‘घूमने’ लगा कि, भोजन की तैयारी कहाँ तक पहुंची है । बहुत सारे हंडे थे । उनके बीच ‘अंतर’ भी बहुत था । एक ‘नंग-धड़ंग’ ‘ब्राह्मण’ रसोईया हाथ में ‘बिल्ली’ लेकर इधर-उधर घूम रहा था । उसने मुझे देखा व बोला, “यहाँ ‘घूमने’ नहीं दिया जाएगा, आपके ‘छूने’ से सारा ‘गड़बड़ –घोटाला’ हो जाएगा /” इन ‘शब्दों’ के कान में पड़ते ही मेरा ‘कलेजा’, मुंह को आ लगा । उस ‘बिल्ली’ की ‘अपेक्षा’ मेरा ‘दर्जा’ निम्न है ? मैं ‘स्वयं’ से यह ‘प्रश्न’ पुछने लगा । ‘छत्रपति’ होते हुये भी, जहां मेरा ऐसा ‘अपमान’ होता हो, वहाँ ‘अस्पृष्यों’ का कितना ‘अपमान’ होता होगा ? इसी लिए मुझे लगता है कि, ‘महार’ बच्चों को, पास लेकर ‘खाना’ खाऊँ ।“
ऐसे ‘महान’, ‘संवेदनशील’ व ‘मानवतावादी’ राजा का वर्णन करते समय, ‘शब्द’ कम पड़ जाते हैं । इन ‘यूरेशियन ब्राह्मणो’ को ‘राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज’ का , ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ के ‘वंशज’ का, कोल्हापुर’ रियासत के ‘मालिक’ का, ‘मराठों’ के ‘प्रतिनिधि’ का स्पर्श ‘अपवित्र’ लगता था लेकिन, ‘बिल्ली’ जैसे प्राणी का ‘स्पर्श’, अपवित्र नहीं लगता था । इसका मतलब वह ‘यूरेशियन ब्राह्मण’, ‘राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज’ की अपेक्षा ‘बिल्ली’ को ‘पवित्र’ मानता था तथा ‘महाराज’ को, ‘अपवित्र’ मानता था । धन्य हैं वे ‘यूरेशियन ब्राह्मण’ और ‘धन्य’ है उनकी ‘वर्ण-व्यवस्था’ व ‘अस्पृश्यता’ । और ‘धन्य’ है आज के ‘यूरेशियन ब्राह्मण’ जो उपरोक्त सभी बातों का ‘समर्थन’ करते हैं ।
 

 ‘माणगाँव’ परिषद के बाद, ‘नागपुर’ में अखिल भारतीय ‘बहिष्कृत समाज’ की ‘परिषद’ 30 मई 1920 को, पुनः दोनों ‘महापुरुष’ इकट्ठा हुये । परिषद के अध्यक्ष, ‘राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज’ थे । अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होने कहा – “ किसी को ‘अस्पृश्य’ कहना ‘निंदनीय’ है । आप ‘अस्पृश्य’ नहीं हैं । आपको ‘अस्पृश्य’ मानने वाले सभी ‘लोगों’ की ‘अपेक्षा’ आप अधिक ‘बुद्धिमान’, अधिक ‘पराक्रमी’, अधिक ‘सुविचारी’ व अधिक ‘त्यागी ‘ हैं व भारत के एक ‘घटक’ हैं । मैं आपको ‘अस्पृश्य’ नहीं मानता । हम सभी एक जैसे एक दूसरे के ‘भाई-बंधु’ हैं । निश्चित ही हमारे ‘अधिकार’ भी एक हैं । भाषण के अंत में उन्होने कहा, “ आपने मुझे ‘अपना’ माना है । अंतिम समय तक यह प्रेम ‘बनाये’ रखें । कितना भी ‘कष्ट’ हो, ‘त्रास’ हो उसकी ‘फिक्र’ न करें, मैं आपकी ‘उन्नति’ के ‘महान’ कार्य में ‘शामिल’ रहूँगा /”

भारत में EVMs का इस्तेमाल १९८२ से...???

*भारत में EVMs का इस्तेमाल १९८२ से...???*
भारत में EVMs १९८२ मे लाये गए। जिन्हें केरल के जिला अर्नाकुलम के परुर विधानसभा में पहली बार इस्तेमाल किया गया। उस विधानसभा में ८४ में ५० पोलिंग स्टेशन पर लोगों ने EVMs से वोट दिए।
वहाँ ए.सी.जोस ३०,३२७ वोट से जीत गए और सिवन पिल्लई केवल १२३ वोटों से हार गए। सिवन पिल्लई ने *रिप्रेसेन्टिन पीपल एक्ट (1951)* और *कंडक्ट ऑफ़ इलेक्शन रूल्स (1961)* हा हवाला देते हुए सुप्रिम कोर्ट में केस दायर किया। सुप्रिम कोर्ट ने भी इन दो कानूनों को ध्यान में रखते हुए कहा के चुनाव आयोग को कोई अधिकार नहीं के वे रिप्रेसेन्टिन पीपल एक्ट  के विरोध में चुनाव लेने का काम करें। RPA में साफ तौर पर लिखा है कि चुनाव केवल बैलेट पेपर पर ही होने चाहिए। चुनाव आयोग को सुप्रिम कोर्ट ने खरी सुनाने के बाद १९८९ में संसद में RPA कानून में बदलाव कर भारत में EVMs के इस्तेमाल को संवैधानिक करार दिया। मगर फिर भी ८ अक्टुबर २०१३ को सुप्रिम कोर्ट ने दिये फैसले के मुताबिक EVMs से मुक्त, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव नहीं हो सकते, इसलिए EVMs के साथ VVPAT मशीन लगाने के निर्देश दिये गए थे। सुप्रिम कोर्ट ने ये फैसला दिए अब ३ साल और ४ महिने हो गये है, लेकिन VVPAT सभी EVMs को नहीं लगाई गई। यदि चुनाव आयोग के पास सभी EVMs को लगाने के लिए पर्याप्त VVPAT या पैसा नहीं है तो उन्हें चाहिए के जहाँ पर भी VVPAT नहीं लगाई वहाँ बैलेट पेपर से ही चुनाव करवा ले और EVMs में होनेवाली धांधली को रोका जा सके, ताकि लोगों का चुनाव प्रक्रिया पर भरोसा बना रहे...
२०१४ लोकसभा इलेक्शन में संजस निरूपम काँग्रेस पार्टी के सांसद सदस्य थे, मुंबई मे उन्होने टीव्ही पर आकर कहाँ EVM मशीन मे गडबडी है| आसाम का जो काँग्रेस पार्टी का State Unit है वह सारे State Unit के लोगों ने ऑब्जेक्शन लिया, मगर काँग्रेस के सेंट्रल लीडरशिप ने इस बात को नजर अंदाज किया| दुसरा ओरिसा में गडबडी हुई, बंगाल में गडबडी हुई,बंगाल मे आधीरंजन चौधरी काँग्रेस पार्टी का प्रेसिडेंट  है| उसने लिखीत मैं इलेक्शन कमीशन को शिकायत दी मगर सेंट्रल लीडरशिप  जो कांग्रेस में है उसने किसी प्रकार का कोई स्टेटमेंट इशू नही किया| काँग्रेस की इतनी पिटाई हुई मगर काँग्रेस ने कभी यह नही कहाँ कि चुनाव मशीन में गडबडी होने की वजह से हमारी पिटाई हुई| काँग्रेस ने ऐसा बिल्कूल भी नही कहाँ, लेकिन काँग्रेस ने ऐसा क्यों नही कहाँ? ये सोचने वाली बात है..

सत्ता लाना होतो सारे हथकंडे अपनाने होंगे ?
उत्तरप्रदेश विधनसभा चुनाव २०१७ में ४०३ सीटों पर चुनाव आयोग के द्वरा किया गया !
मीडया में कभी बसपा की लहर, कभी बीजेपी की लहार, और कभी सपा की लहार बताया गया.
पर जैसी ही चुनाव आयोग ने ११ मार्च २०१७ का परिणाम घोषित किया,
शाम होते होते मायावतीं जी ने EVM में गड़बड़ है ऐसा विरोध किया,
साथ ही अखलेश यादव जी ने भी EVM पर विरोध जताया और राहुल गाँधी ने भी EVM के विरोध में बोले
पर इन नेताव ने खाली मुह से स्टेटमेंट दिया पर इन नेताव ने कोर्ट में जाने की जहमत नही उठाई.
ऐसा किसी भी नेता ने नही कहा EVM की जाँच हो और इस परिणाम को रद्द किया जाये
नाही किसी नेता ने कोर्ट में अपील की!

पर मैं कहता हु उत्तरप्रदेश में ४०३ सीटों पर चुनाव नही हुआ, बल्कि ३० पर चुनाव कराया गया है.
यह मैं यह दावे से कहता हु, ३७३ सीटों पर चुनाव हुआ ही नही अगर मैं गलत हु, तो चुनाव आयोग
मेरे पर कॅश दर्ज कर दे, साथ ही देश के नेता भी मुझ पर केश दर्ज कर सकते है.
२०१३ में सुप्रीमकोर्ट ने जजमेंट दिया चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी हो इसके लिए voter-verified paper audit trail (VVPAT) लगाया जाये ऐसा चुनाव आयोग को सुप्रीमकोर्ट ने आदेश दिया गया , पर चुनाव आयोग ने (VVPAT) ४०३ सीटों से
सिर्फ ३० जगह पर लगाया.
तो मैं ये कैसे मान लूँ ३७३ सीटों पर चुनाव पारदर्शी हुआ.
या ३७३ सीटों पर चुनाव हुआ ही नही है ये में दावे के साथ कहता हु !

उत्तर प्रदेश में बीजेपी मुख्यमंत्री मात्र २५ सीटों से बनाया गया है.
३७३ सीटों को चुनाव आयोग, मिडिया, और कोर्ट ने नजर कर दिया!
साथ ही उत्तर प्रदेश की जनता ने ३७३ सीटों पर वोटिंग ही नही किया है
ये भी मैं दावे से कह सकता हु.   (बीजेपी २५,सपा ४,बसपा १)

चुनाव आयोग ने २०१९ को होनेवाले आम चुनाव में सभी पोलींग बुथपर VVPAT लगाने कि घोषणा कर दी है। साथ में यह भी कहा है कि अगर कही पर मतों कि गिणती में कोई संदेह उत्पन्न होता है तो वे पेपर ट्रैल को भी गिनेंगे। इसके लिए उन्होंने केंद्र सरकार से ३,१७४ करोड रुपए कि मांग की है। अब सरकार कि ये जिम्मेदारी है कि वे चुनाव आयोग को मुक्त, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव करवाने के लिए पैसा मुहैया कराये। अगर केंद्र सरकार पैसा नहीं देती तो चुनाव आयोग को केंद्र सरकार की शिकायत सुप्रिम कोर्ट में करने कि पुरी छुट है, क्योंकि VVPAT लगाने का निर्णय सुप्रिम कोर्ट ने दिया है।

EVM में गड़बड़ी के आरोप पर EC का मायावती को जवाब, कहा- आरोप में कोई दम नहीं..
ऐसा कहा ECI ने!

मैं सबूत के साथ कह रहा हु ,
तो फिर ECI केंद्र सरकार से ३,१७४ करोड रुपए कि मांग क्यू की,
ECI अगर आप का जवाब है, मुक्त, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव करवाने का है,
तो उत्तर प्रदेश में ३७३ सीटों की पारदर्शी साबित करो की मुक्त, निष्पक्ष और पारदर्शी
चुनाव तुमने उत्तर प्रदेश में करवाया है...

हितेश प्रजापति