Thursday, February 1, 2018

मूकनायक़ साप्ताहिक 31 जनवरी 1920

मूकनायक़ साप्ताहिक 31 जनवरी 1920
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छत्रपति शाहू महाराज ने डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर का “ मूकनायक़ “ शूरु करने में सहायता की । माणगाँव (काग़ल) महाराष्ट्र में डॉक्टर अंबेडकर की अध्यक्षता में ‘ दक्खन बहिकृत ‘ समाज की बैठक हुई, शाहूजी विशेष अतिथि थे । उसमें शाहूजी ने कहा ;
“ हमें बड़बोले नेता नही चाहिए, अपने कर्म से जाति भेद तोड़कर हमें मनुष्यता से व्यवहार करने वाले नेता चाहिये। डॉ .अंबेडकर तो विद्वानो में एक अलंकार है। आप ने अपना नेता खोज लिया है, इस कारण मैं तुम्हारा अंतकरण से अभिवादन करता हुँ । आप लोगों को उनका आभारी होना चाहिए ।
मेरा यह मानना है की अंबेडकर तुम्हारा उद्दार करने से चूकेंगे नही ।इतना ही नही एक समय आयेगा की वह सम्पूर्ण हिदूस्थान नेता होगे ।”
आख़िर में शाहू महाराज ने बाबासाहेब को रेशमी पगड़ी भेंट की  व प्रेमपूर्वक आनंद से उनके सिर पर पहनाई । इस सन्मान से बाबासाहेब की आँखें छलक उठी  ,उन्होंने कहा “ छत्रपति ने सन्मान की पगड़ी मेरे सिर पर पहनाई है उसका में सदैव मान रखूँगा"
और सही मैं बाबासाहेब अंबेडकर ने पगड़ी का सन्मान ताउम्र बहूजनो की सेवा करते हुवे रखा ।उनका कार्य इतिहास में स्वर्ण अक्षरों लिखा भरा पड़ा है ।


Tuesday, January 30, 2018

भगवा ध्वज यह ब्राम्हणो का नही है

भगवा ध्वज यह ब्राम्हणो का नही है यह तो इसी देश के मूलनिवासियों का है।ब्राम्हणो ने भगवा शब्द और रंग चुराया है।भगवा यह पाली भाषा का है।इसके मायने इस तरह है -भग यानि विकार वान यानि नष्ठ करना। तथागत बुद्ध ने सभी विकारों को नष्ठ किया इसलिए उन्हें भगवान कहते है। भगवान यानि त्यागी व्यक्ति। ब्राम्हणो में एक भी त्यागी व्यक्ति पैदा नही हुआ बल्कि ब्राम्हणो के सभी देवता भोगी है।
शंकराचार्य ब्राम्हण ने बौद्ध धर्म को खत्म करने के लिए ब्राम्हणो को बौद्ध भिक्खु वो के भैष में ओरिजनल बौद्ध भिक्खु वो के अंदर छोड़ा और उसके माध्यम से ओरिजनल बौद्ध भिक्खुवो का कत्ले आम किया।इसलिए शंकराचार्य को प्रछन्न बौद्ध कहा जाता था । उसने यह देखा की बौद्ध धर्म प्रचारकको की हत्याएं तो की है मगर आम जनता में भगवा रंग और शब्द तथागत बुद्ध और बौद्ध भिक्खु वो के कारण है तो भोगी ब्राम्हणो ने उस रंग को अपना लिया उसका ब्राम्हणीकरण किया और बाद में सभी भोगी ब्राम्हण भगवा वस्र पहनने लगे। अब लोगो को लगता है कि यह रंग ब्राम्हणो का है यह बात गलत है।इसका कॉपी राइट मूलनिवासियों के पास है यानि हमारे पास है।आरएसएस के पास नही ।
छत्रपति शिवाजी महाराज और संतो का भी झंडा भगवे रंग का था क्यों कि वे तथागत बुद्ध की ही विरासत चला रहे थे।छत्रपति शिवाजी महाराज ने दूसरा राज्याभिषेक शाक्त यानि बुद्ध पद्धति से 24 सितम्बर 1674 को किया था।छात्रपतिं संभाजी महाराज शाक्त यानि शाक्य यानि बुद्ध धम्म से इतने  प्रभावित हुए की उन्होंने बुद्धभूषनम नामक काव्य ही लिख डाला।अपना प्रेरणास्रोत तथागत बुद्ध को बनाया । इसीलिए पेशवा ब्राम्हणो ने दोनों छात्रपतियो की षड्यन्त्र से हत्याएं की।और हत्यावो का पाप छुपाने के लिए मुस्लिम विरोधी इतिहास बनाया जो वैसा नही था ।ब्राम्हण बहुत ही षड्यन्त्रकारी होते है ।
  आरएसएस,बीजेपी ने बुद्ध से संघ शब्द चुराया।भगवा रंग चुराया।बुद्ध से संबंधित कमल है उसे भी चुराया। ब्राम्हण चोर भी है ,आतंकवादी भी है । सावरकर ने कहा है कि ब्राम्हण अल्पसंख्य होने के बावजूद बहुसंख्य लोगो पर राज कैसे कर पाया क्यों कि उन्होंने असमिलेशन किया यानि जो जो अच्छी अच्छी बातें थी उसे चुराई और बाद में उसे अपनी घोषित की ।समन्वय किया!गोलवलकर के अनुसार ब्राम्हण दीर्घकाल राज्य क्यों कर पाया ?क्यों कि ब्राम्हणो ने बहुजनो के महापुरुषों की हत्याएं की बाद में उसे ही अपना लिया जैसे कि बुद्ध को ब्राम्हणो ने विष्णु का अवतार घोषित किया।इसे ही गोललकर संस्कृतायझेशन कहा ।इसे ही ब्राम्हणीकरण कहते है।सीधी भाषा मे अगर कहा जाए तो किसी एक पेड़ के ऊपरी हिस्से को काटकर उसके जगह दूसरे पेड़ की टहनी को लगा देना इसे कलम करना कहते है। यानि उस पेड़ का निचला हिस्सा दूसरे पेड़ का और ऊपर का दूसरा मगर फल ऊपर के हिस्से का आता है। फसाद और आतंक के लिए बहुजन लड़को का इस्तेमाल किया जाता है क्यों कि उनके दिमाग को कलम किया गया है ।इसलिए फसाद ब्राम्हण नही मरता ,बहुजन मरता है ।
इसलिए अब उत्तर प्रदेश में भगवे रंग को इसीलिए  ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि sc, st ,ओबीसी का धार्मिक ध्रुवीकरण करके मुस्लिमो के खिलाफ माहौल बनाया जाए ।ताकि 2019 के चुनाव में ब्राम्हणो को फिर से evm घोटाला करने का अवसर मिले और लोगो का ध्यान डायवर्ट किया जाए।
भारत मे भगवा शब्द बहुजनो का है इसे अब ब्राम्हणो से छीनो।क्यों कि ब्राम्हणो को तो काला रंग अच्छा लगता है।आरएसएस के ब्राम्हण काली टोपी जो पहनते है।क्यों?शायद उन्हें पहले ही पता है कि वे काले समुंदर के किनारे यूरेशिया देश के वे निवासी है। उसके याद में वे काली टोपी पहनते है ।और ब्राम्हण कौवे को भी बहुत मानते है क्यों कि वह भी काला है । ब्राम्हणो ने काला झंडा अपना लेना चाहिए और जल्द से जल्द भारत छोड़के यूरेशिया यानि अपने मातृभूमि भाग जाना चाहिए।नही तो बामसेफ,भारत मुक्ति मोर्चा वाले लोग उन्हें भारत से भागने देने वाले नही है बल्कि उन्हें गुलाम प्रजा के तौर पर भारत मे रखने वाले है। क्यों कि डीएनए अनुसंधान के अनुसार ब्राम्हण के नागरिक नही है ।
बोलो 85 जय मूलनिवासी!!!
(किसी को बुरा लगे तो भी अपने बुद्धी और विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए ,ब्राम्हणो के मिथ्या बातो में नही फसना चाहिए।यह देश हमारे बाप जादावो का है विदेशी मोहन भागवत,राहुल गांधी,और विदेशी ब्राम्हणो का नही है !! जय मूलनिवासी।जय मूलनिवासी राष्ट्र!!!मूलनिवासी राष्ट्रवाद ही हमारा राष्ट्रवाद है!!!)
प्रोफेसर विलास खरात।
डायरेक्टर डॉ बाबासाहब आंबेडकर रिसर्च सेंटर,नई दिल्ली।

Friday, January 19, 2018

विपश्यना केंद्र आरएसएस चलाता है!!

विपश्यना केंद्र आरएसएस चलाता है!!
रामभाऊ म्हाळगी अॅकॅडमी मुंबई ,गोखले इन्स्टिट्यूट पूना और भोसला मिल्ट्री स्कुल नाशिक हे RSSचे सेंटर है ।
गोयंका के संस्था द्वारा आरएसएस लोगो को खुलकर सहयोग देना यह इस बात का सबूत है कि बनिया गोयंका डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी के बुद्ध धम्म क्रांति को रोकने के लिए ही काम करते है ।
डॉ बाबासाहब आंबेडकर जी ने 1954 में द्वितीय अंतरराष्ट्रीय परिषद में खुलकर कहा था कि अभिधम्म और समाधी यह भारत मे बुद्ध धम्म के पुनर्जीवन के लिए सबसे बड़ी बाधक है।तथागत बुद्ध ने जो सामाजिक क्रांति की ,सामाजिक उपदेश किये उसी को आधार बनाकर बौद्ध धम्म मुहमेंट चलानी पड़ेगी।"तथागत बुद्धने जो सामाजिक और विनय (शील) इसपर जो उपदेश दिया है उसी पर ज्यादा जोर देने के जरूरत है ।मुझे यह आप लोगो के नजर में यह खास बात लाकर देने की है आधुनिक बौद्ध धम्म के मानने वालों में अभिधम्म,समाधी और ध्यान पर बहुत ही जोर दिया जाता है । वही रीत भारत मे प्रस्तुत की तो वह बौद्ध धम्म के लिए बहुत ही हानिकारक सिद्ध होगी।" जब डॉ बाबासाहब आंबेडकर जी को समझ मे आ रहा था उतना बनिया गोयंका को समझ मे आ रहा था ? भारत मे बौद्ध धम्म गोयंका ने नही डॉ बाबासाहब आंबेडकर जी ने लाया है ।
फिर इसका अध्ययन भारत के ब्राम्हणो ने किया और एक बनिया गोयंका को डॉ बाबासाहब आंबेडकर जी के आंदोलन को रोक लगाने के काम पर लगा दिया ।
कांग्रेस के कार्यकाल में कुछ गद्दार लोगो को हाथ मे लेकर यह अभियान चलाया गया कि सरकारी कर्मचारियों के लिए कम्पलसरी 10 दिन की विपश्यना भेजा जाएगा । दरअसल जाति व्यवस्था और गैरबराबरी के खिलाफ विद्रोह न बढ़े इसके लिए गोयंका ने काम किया।गोयंका वही बताते है जो ब्राम्हण बुद्ध के बारे में गलत बताते है । जैसे कि सिद्धार्थ ने गृह त्याग क्यों किया ?तो उसकी वजह है , चार दृश्य देखना।दरअसल यह मिथ्या बात है यह सबूतो के आधार पर डॉ बाबासाहब आंबेडकर जी ने सिद्ध किया कि सिद्धार्थ ने प्रेत ,गरीब,बुढापा यह चीज देखी नही है यह गलत है ।जो बात डॉ बाबासाहब आंबेडकर जी ने सबूतों के आधार सिद्ध की ।बिल्कुल उसके खिलाफ मुंबई में जो पगोडा बनाया गया उसके मेन होल में गोयंका ने वही चार दृश्य के पेंटिंग करवाकर दीवारों पर लगाये ।इससे क्या सिद्ध होता है ?
गोयंका बुद्ध के और धम्म के विरोधी है।इसका और एक सबूत इस तरह है ।साधको का मासिक प्रेरणा पत्र (वर्ष 35,अंक -4)विपश्यना के 17 अक्टूबर 2005 को गोयंका ने एक आर्टिकल लिखा है जिसका शीर्षक "धर्म यात्रा के पचास वर्ष" ऐसा है।उसमें गोयंका ने जो लिखा वह सच्चे आंबेडकरवादी बौद्ध को घुस्सा दिलाएगा मगर थोड़ा दिमाग लगाओगे तो !!! गोयंका ने लिखा है -"इतना तो मैं समझ ही रहा था कि बुद्धवाणी में अनेक अच्छी शिक्षाएं विद्यमान है ,तभी यह विश्व के इतने देशों में और इतनी बड़ी संख्या में लोगो द्वारा मान्य हुई है,पूज्य हुई है ।परंतु इसमें जो कुछ अच्छा है ,वह हमारे वैदिक ग्रंथो से ही लिया गया है।" गोयंका ने लिखा है बुद्ध का अपना कुछ भी नही है बुद्ध ने तो वैदिक धर्म से ही चुराया है । अब गोयंका भक्तो को यह पढ़कर क्या महसूस होगा इसकी हम परवाह नही करते ।मगर गोयंका ने वह गलत और भद्धि बात 2005 को ही क्यों कही ?उन्होंने उस आर्टिकल को अपने धर्म यात्रा के पचास वर्ष ऐसा शीर्षक दिया था । डॉ बाबासाहब आंबेडकर के धम्म परवर्तन के 50 साल 2006 को पूरे होने वाले थे उसे काउंटर करने के लिए यह गोयंका का आर्टिकल था।डॉ बाबासाहब आंबेडकर जी के द्वारा दिया गया बुद्ध धम्म को गोयंका मिटाना चाहते थे।विपश्यना जातिवाद को और मजबूत करती है ,ब्राम्हणवाद को और मजबूत करती है। बनिया ने बुद्ध धम्म को धंदे में बदल दिया!!
गोयंका की छोटी छोटी कुछ किताबें है जो खुद उन्होंने प्रकाशित की है ।'क्या बुद्ध दुक्खवादी थे?'यह किताब सन 2000 में प्रकाशित की थी।दरअसल ब्राम्हण सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने यह आरोप लगाया था कि बुद्ध दुक्खवादी थे ,पलायनवादी थे।अब गोयंका जैसे व्यक्ति ने उसके बातो का जिक्र किया है तो उसका खण्डन भी तो करना चाहिए था।इसपर गोयंका ने जो जवाब दिया वह अपने आप सिद्ध करता है कि गोयंका बुद्ध धम्म का विरोधी है ब्राम्हणो का आरएसएस का एजंट है ।गोयंका ने जवाब दिया कि "मै नही मानता कि ,डॉ राधाकृष्णन जी ने जानभुजकर ऐसा किया।भले अनजाने में किया हो ।"गोयंका बुद्ध के वकील नही बुद्ध के दुश्मनों के वकील बने रहे जिंदगीभर!!!
इसकी राधाकृष्णन ने बड़े गर्व से कहा था (और जिंदगीभर कहता ही रहा) की हिन्दू (वैदिक)संस्कृति हजारो सालो में टिकी रही इसका कारण उसमे अच्छाई है बाकी संस्कृतिया खत्म हुई। इसपर डॉ बाबासाहब आंबेडकर जी ने एनिहिलेशन ऑफ कास्ट में जवाब दिया था कि आप कितने वर्ष जिये यह महत्वपूर्ण नही है आप कैसे जिये यह महत्वपूर्ण है ।
गोयंका के संस्था द्वारा आरएसएस के लोगो के साथ आकर काम करना यह अपने आप मे सबूत मिल गया है कि गोयंका का असली मकसद क्या था । ध्यान देने वाली बात यह है कि गोयंका ने महाराष्ट्र को ही अपना मुख्य केंद्र क्यों बनाया था ?वजह क्या थी ?डॉ बाबासाहब आंबेडकर जी के धम्म क्रांति को महाराष्ट्र में ही दबाया जा सके ताकि यह यह आंदोलन वैदिक धर्म को ही दुनिया से मिटा देगा।
आज की पोस्ट इतनी ही।इसपर वैचारिक बाते हो।इसपर चिंतन हो ।क्यों डॉ बाबासाहब आंबेडकर जी ने हमें बुद्ध धम्म दिया है ,गोयंका ने नही।गोयंका बनिया है ।और ब्राम्हण और बनिया एक हो जाते है तो वह पूरे देश को लुटते है ।
नत्थि में सरणं अयं बुद्धो में सरणं वरण।
अर्थात -बुद्ध के अलावा मुझे किसी के भी शरण मे नही जाना है ।
अतः दीप भवो।
अर्थात-स्वयम प्रकाशमान बनो,खुदका दिपक खुद बनो।
जागृति का दीपक जलाएं रखो।
जय भीम,नमो बुद्धाय।
प्रोफेसर विलास खरात,
डायरेक्टर डॉ बाबासाहेब आंबेडकर रिसर्च सेंटर,नई दिल्ली।

Thursday, January 18, 2018

बामसेफ क्या है?

"बामसेफ" क्या है?
*बामसेफ* नामक संगठन का निर्माण 6 दिसम्बर 1978 को किया गया था, जिसके संस्थापक सदस्यों में तीन महापुरुषों का नाम आता है-
*मान्यवर दीनाभाना*,
*मान्यवर डी.के. खापर्णे*,
*मान्यवर कांशीराम*।

बामसेफ संगठन के पहले *राष्ट्रीय अध्यक्ष मान्यवर कांशीराम साहब* बनाये गए थे।
*BAMCEF* से अभिप्राय:
B से बैकवर्ड,
A से एंड,
M से माइनरटीज,
C से कम्युनिटी,
E से इम्प्लाइज,
F से फेडरेशन !

बैकवर्ड का मतलब होता है सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक, और राजनीतिक रूप से पिछड़ा होना, तो बैकवर्ड शब्द में ही ओबीसी, एससी, एसटी तीनों की गणना की जाती है।
माइनरटीज में मुस्लिम, सिक्ख, बौद्ध, क्रिश्चियन, लिँगायत आदि धर्मपरिवर्तित अल्प संख्यक जातियों को लिया गया है।

बामसेफ ओबीसी, एससी, एसटी एवं धर्मपरिवर्तित अल्पसंख्यक समाज से आनें वाले सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों का संगठन है।
बामसेफ संगठन की खासियत यह है कि यह अधिकारियों एवं कर्मचारियों का संगठन होते हुए भी इनके व्यक्तिगत लाभ के लिए काम न करके उस समाज के हक - अधिकार की लड़ाई लड़ रहा है, जिस समाज से ये अधिकारी एवं कर्मचारी लोग आते हैं।
*बामसेफ अधिकारियों एवम् कर्मचारियों का संगठन होने के कारण गैर-राजनैतिक, असंघर्षशील तथा सभी धर्मों के लोग जुड़े होने के कारण गैर-धार्मिक संगठन है।*
साथियों जब बामसेफ का गठन किया गया था, उस समय यह तय हुआ था कि 20 वर्षों तक बिना किसी राजनीतिक पार्टी का गठन किये हुए हम लोग केवल मूलनिवासी समाज को जगाने का कार्य करेंगे। लेकिन बिना संघर्ष किये हुए अधिकार मिल नहीं सकते, इसलिए 3 वर्ष बाद डीएस 4 नामक लड़ने वाले संगठन का निर्माण किया गया।
डीएस 4 का ही नारा था *"ठाकुर, बाभन, बनियाँ छोड़ बाकी सब हैं डीएस 4 था"*
इसके गठन के तीन साल बाद ही मान्यवर कांशीराम साहब नें 1984 में बसपा नामक राजनीतिक पार्टी का गठन किया। चूँकि मूलनिवासी समाज उस समय पूर्ण रूप से जागृत नहीं हो पाया था। इसलिए बसपा नें अविकसित बच्चे की तरह जन्म लीया। जब बसपा नामक पार्टी बनीं तो मान्यवर कांशीराम साहब इसके पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। जब मान्यवर कांशीराम साहब बसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनें तो उन्होंने बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिए।
साथियों ऐसी घटना घटित होनें के कारण जब हमारी बसपा के रूप में राजनैतिक क्रांति शुरू हुई तो बामसेफ रूपी सामाजिक क्रांति कमजोर पड़ गई।
मान्यवर कांशीराम साहब नें बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से त्याग पत्र इस लिए दिया क्योंकि कोई भी राजनीतिक व्यक्ति बामसेफ का राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बन सकता है।
तो बामसेफ के दूसरे *राष्ट्रीय अध्यक्ष मान्यवर डी.के. खापर्डे साहब* को बनाया गया। काफी मेहनत करके मान्यवर डीके खापर्डे साहब नें सामाजिक क्रांति को जगाने का कार्य किये।
इसी बीच बामसेफ के तीसरे संस्थापक सदस्य *मान्यवर दिनाभाना साहब* हमारे बीच नहीं रहे। मान्यवर दिनाभाना साहब की पत्नी सुमन दादी अब भी बामसेफ में समर्पित होकर व्यवस्था परिवर्तन करनें के अपनें पति के सपनों को साकार करनें में लगी हुई हैं।
अब वर्तमान में; बामसेफ के तीसरे *राष्ट्रीय अध्यक्ष मान्यवर वामन मेश्राम साहब* नें अपनें अथक प्रयास द्वारा बामसेफ संगठन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का संगठन बना दिए हैं।
वर्तमान में बामसेफ नें अपनें 55 सहयोगी संगठनों का निर्माण कर बामसेफ की ताकत को कई गुना बढ़ानें का कार्य किया है।
साथियों मूलनिवासी समाज के प्रत्येक महापुरुषों नें स्वयं द्वारा की गई गलतियों को स्वीकार किया है। ऐसे लोगों नें अपनी गलती इस लिए स्वीकार किये हैं कि हमारी आगे आने वाली पीढ़ी उस गलती को दुबारा न दुहराये।
*बाबा साहब* जैसे महान व्यक्ति नें भी अपनी गलती स्वीकार की है कि मैनें अपनें समाज के लिए पूरी जिंदगी कुर्बान कर दी लेकिन एक गलती मैनें भी की जो दूसरा अम्बेडकर पैदा नहीं किया। जो हमारे मिशन को आगे ले जानें का कार्य करता।

इसी प्रकार, *मान्यवर कांशीराम साहब* नें भी अपनी गलती को स्वीकार किया है कि मैनें हाँथी (बसपा, राजनीतिक पार्टी) तो पैदा कर दिया और खुद हाँथी बन बैठा और महावत (बामसेफ) का पद छोड़कर महावत पैदा करना छोड़ दिया। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था, मुझे महावत ही बनें रहना चाहिए था। जिससे हाँथी को कण्ट्रोल कर सकता।
साथियों *मान्यवर वामन मेश्राम साहब* नें इन महापुरुषों द्वारा महशूस की गलतियों से सबक लेते हुए संकल्प लिया है की मैं स्वयं हाँथी कभी नहीं बनूगां। मैं केवल महावत का ही काम करूँगा और मूलनिवासी समाज में इतना मजबूत नेतृत्व पैदा कर दूँगा कि आने वाले समय मे मूल निवासी समाज अपनी खोयी हुयी सत्ता वापस प्राप्त कर सके। ताकि आने वाली पीढी के हक-अधिकार सुरक्षित रह सके।
जय मूल निवासी ।

Monday, January 8, 2018

ब्राह्मणों की करतूत महापुरुषों की जुबान से जानिए

१." ब्राह्मण नीच आहेत हे सा-या जगाला माहीत आहे." -- महात्मा बसवेश्वर.

२." जो तु ब्राह्मण ब्राह्मणी जाया।तवू आन बाट काहे न आया।।."   -- संत कबीर.

३." झूट ना बोल पांडे". -- गुरू नानक.

४." ब्राह्मण म्हणून कोण मुलाहिजा करू पाहतो?"   --  शिवछत्रपती.

५." करी आणिकांचा अपमान,
      खळ छळवादी ब्राह्मण||
      तया देता दान,
       नरका जाती उभयता ||"   --  संत तुकाराम.

६. " मेला ब्राह्मण हरामखोरीस गेला. परंतू मी बाई म्हणून पाहू नका. खांद्यावर भाला घेऊन उभी राहीन तेव्हा पेशव्यांच्या दौलतीस जड                                                                                            जाईल.आम्ही तुमच्यासारखी भाटभडवी करून राज्य कमावलेले नाही. आमच्या पूर्वजांनी तलवारीच्या जोरावर हे राज्य मिळविले आहे".               -- अहिल्याबाई होळकर.

७. " ब्राह्मणांचे वर्चस्व त्यांच्या ज्ञानामुळे नसून त्यांनी समाजात पसरविलेल्या आणि पसरवित असलेल्या अज्ञानामुळे आहे". -- महात्मा फुले.    

८. " ब्राह्मणी कावा समजूनी घ्यावा।
       ब्राह्मणाचे इथे नाही प्रयोजन।
       दयावे हाकलून। जोती म्हणे।।"    -- महात्मा फुले.

९." इंग्रजी शिकोनी जातीभेद मोडा।भटजी भारूडा फेकोनीया।।"   -- क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले.

१०. " मंदिरात देव नसतो तर पुजा-याचे पोट असते".  -- संत गाडगेबाबा.

११. " ब्राह्मणांनी पसरविलेल्या चूकीच्या कल्पनांच्या कचाट्यातून हिंदूमनाची मुक्तता झाली पाहिजे. या मुक्तीशिवाय भारताला भवितव्य      नाही."  --  डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर.
     
12. " ब्राह्मणी ग्रंथांनी आमची मूळची नैसर्गिक संस्कृती विकृत करून टाकली. या आत्मनिष्ठ स्वार्थी पुरोहितशाहीचा बिमोड करून त्या ठिकाणी स्वाभाविक नैसर्गिक मूल्यांची संस्थापना करणे मी माझे कर्तव्य समजतो..... " --  डॉ .पंजाबराव देशमुख

सरस्वती गाने गाती थी?

*क्या सरस्वती गाने गाती थी?*
*क्या ऊसका गाना हिट हुआ था?*
➖सवाल है जो आपको और हमको सभी को पूछने चाहिए➖

1. सरस्वती ने कितनी और कौन सी किताबे लिखी?
2. सरस्वती का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान क्या है?
3. सरस्वती ने कितने लोगो को कब और कैसे शिक्षित किया?
4. सरस्वती को ज्ञान (मतलब विद्द्या या जो भी आप समझते है) कहाँ से प्राप्त हुआ?
5. क्या ब्रह्मा को ज्ञान सरस्वती ने दिया?
अगर नहीं तो ब्रह्मा को ज्ञान कहाँ से मिला?
या सरस्वती से पहले ब्रह्मा के पास कोई ज्ञान नहीं था?
6. सरस्वती ने कपड़े (मतलब साड़ी) पहनना किस साल शुरू किया?
7. क्या गैर ब्राह्मणों को शिक्षा के अधिकार से सरस्वती ने वंचित किया?
अगर नहीं तो फिर किसने किया?
8. क्या सरस्वती सिर्फ प्राइवेट स्कुल में ही शिक्षा बांटती है या सरकारी स्कुल
भी सरस्वती के प्रभाव क्षेत्र में है?
9. जिन शिक्षण संस्थानों में सरस्वती की पूजा नहीं होती वहीँ से ही सबसे अधिक होनहार छात्र क्यों निकलते है?
10. सरस्वती अगर शिक्षा (विद्द्या) देती है तो आखिर किस तरह?
11. सरस्वती कौन कौन से क्षेत्र में शिक्षा देती है? (जैसे कि विज्ञान, संगीत, चिकित्सा या
पुरातत्व आदि)।
12. सरस्वती शिक्षा (ज्ञान/ बुद्धि जो भी आप बेहतर समझे) क्या जाति, धर्म या रंग देखकर देती है?
13. आखिर सरस्वती और बाकियों को पुजवाने से फायदा किसको हुआ?
14 डॉक्टर बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर को सर्वस्वाति ने ही दर्शन दिया था.
15 इसने आजतक कितने गाने गाये या फिर लिखे हुवे है,
(वेदों में सरस्वती के समकालीन और सरस्वती से पूर्व भी कई लोगो का जिक्र हुआ
है। ये सभी लोग आपस में एक दूसरे को देव और देवी शब्द से संबोधित करते थे।
ऋग्वेद में यज्ञो में परोसी जाने वाली मदिरा का जिक्र है और यज्ञो के बाद पैदा होने वाले देवी देवताओ का जिक्र है। लोगो की हत्याओ के प्रयोजन के लिए होने का जिक्र
भी मिलेगा।)
सवाल आसान है। उम्मीद तो नहीं है कि किसी ब्राह्मण 【पण्डे/ महंत/ पुजारी/
मठाधीश (ज्ञान का ठेका इन्ही लोगो के पास जो है)】 में इतनी बुद्धि होगी फिर भी
जवाब दे सके तो दे जरूर।
बाकी अभी तक सरस्वती ब्रह्मा के रिश्तों पर कोई सवाल नहीं किया है तो गाली ज्ञान वाले सरस्वती ब्रह्मा की नाजायज संतान लोग कृपया गाली ज्ञान का प्रदर्शन न ही करें। शांति पूर्वक विदा ले।
मुझे ये लिखना पड़ रहा है क्योंकि सरस्वती को शिक्षण संस्थानों में जबरदस्ती थोपा जा रहा है। जो शिक्षण संस्थान सरस्वती के बारे में कुछ नहीं जानते बच्चों को गलत और अवैज्ञानिक बाते सीखा कर देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे है।
आज शिक्षा के नाम पर सब कुछ विदेशो से आयत किया ही पढ़ रहे है। आज तक एक भी डॉक्टर, इंजीनियर या वैज्ञानिक नहीं देखा सुना जिसने सिर्फ वेदों के अध्ययन से शिक्षा प्राप्त की हो। यहाँ तक कि खुदको कट्टर ब्राह्मण कहने मानने वालो तक के बच्चे
अंग्रेजी स्कुलो में पढ़ रहे है।
विचार को सभी लोगो तक पहुंचाए ताकि अन्धविश्वास और ब्राह्मणवाद के काले बादल इस देश से हट जाए।

नेहरु के कहने पर बाबासहाब पर पथराव किया था.

“हमने नेहरु के कहने पर बाबासहाब पर पथराव किया था...” -भोला पासवान शास्त्री.

पंडित नेहरु ने Objective Resolution में लिखीत रुप से आश्वासन दिया था कि ओबीसी को उनके अधिकार देने के लिए जल्दही संविधान के आर्टिकल ३४० के तहत एक आयोग का गठन किया जायेगा और ओबीसी उनके संवैधानिक अधिक दिये जायेंगे. लेकिन संविधान लागु होने के देढ साल बाद भी जब नेहरु अपने आश्वासन का पालन नहीं किया तब जाकर इसके विरोध में बाबासहाब डा.आंबेडकर ने अपने कानून मंत्री पद का इस्तिफा दिया. बाबासहाब ने इस्तिफा देने के चार कारण थे, दुसरे नंबर का कारण था नेहरुद्वारा ओबीसी के लिए आयोग का गठन ना करना!

अपने मंत्री पद का इस्तिफा देने के बाद बाबासहाब ने ओबीसी को जागृत करने का एक बृहद कार्यक्रम बनाया और वे देशभर घूँमने लगे. ऐसा एक कार्यक्रम दि.६ नवंबर १९५१ को आर.एल.चंदापुरीजी के माध्यम से पटना, बिहार में लगाया था. वो मेहज एक कार्यक्रम नहीं बल्कि ओबीसी कि एक विशाल रैली थी और उस विशाल रैली को संबोधित करने के लिए आर.एल.चंदापुरीजी ने बाबासहाब डा.आंबेडकरजी को बुलाया था. यह बात रैली से पहले ही पं. नेहरु को पता चली और उसने उस रैली को विफल बनाने का षडयंत्र रचा. इसके लिए पं.नेहरु ने बाबु जगजीवन राम को काम पर लगा दिया. बाबु जगजीवन राम ने भोला पासवान शास्त्री को रैली को विफल कराने कि जिम्मेदारी दी. भोला पासवान शास्त्री ने रैली पर पथराव किया. रैली में भगदड मची, बाबासहाब को अपना भाषण अधुरा छोडना पडा. यह बात खुद भोला पासवान शास्त्री ने अपने अंतिम दिनों में कही है. वे कहते है ‘ओबीसी के मसिहा बाबासहाब जब पहली बार पटना आये थे तब मैने बाबु जगजीवन राम कहने पर बाबासहाब पर पथ्तर फेंके थे.’ इस बात का उन्हें आखरी दिनों दुख हुआ. आज उसी बाबु जगजीवन राम कि लडकी राष्ट्रपती पद के चुनाव के लिए काँग्रेस द्वारा नामांकित उमीदवार है. दलाली तो उनके खुन में ही है.

बाबासहाब कि रैली पर पथराव हुआ लेकिन तत्कालिन मीडिया ने एक लाईन कि खबर तक नहीं छापी. उन्हें ऐसा करने के आदेश नेहरु से प्राप्त हुए थे. बाबासहाब ने ओबीसी कि रैली में ऐसा क्या कहा कि पं.नेहरु ने उसे ना छापने के आदेश दिए, यह महत्वपुर्ण सवाल है.
बाबासहाब ने ओबीसी को संबोधित करते हुए कहा “नेहरु लोकतंत्र पर ब्राम्हणों का एकाधिकार करना चाहता है, इसे मै नहीं होने दूँगा. अगर पिछडे वर्ग के लोग मुझे साथ-सहयोग करते है तो मै आर-पार कि लडाई लडने के लिए तैयार हूँ।” यह बात ब्राम्हणी व्यवस्था के लिए कितनी नुकसानदायी हो सकती थी इसे नेहरु अच्छी तरह जानता था, इसलिए नेहरु ने उसे मीडिया से ब्लैक आऊट कर दिया.

आज तक ब्राम्हणों का प्रत्येक षडयंत्र ओबीसी को अज्ञान में रखने के लिए ही किया गया है. जिस दिन ओबीसी को ब्राम्हणोंद्वारा हो रहे अन्याय-अत्याचार कि जानकारी हो जायेगी उस दिन ब्राम्हणी व्यवस्था भारत में आखरी सांस लेगी.

कौन है देशी (मूलनिवासी) और कौन है विदेशी? ??

कौन है देशी (मूलनिवासी) और कौन है विदेशी? ??

 *मुलनिवासी* यह संकल्पना राष्ट्रपिता म.फुलेजी ने बनाई है, वे ब्राम्हणों को *इराणी आर्य* कहते है। *बामसेफ* तो केवल इस संकल्पना का प्रचार-प्रसार कर उसे प्रस्थापित करने का काम कर रहा है।
अफ्रिका से आदिमानव स्थलांतरीत हुआ था, जिसका किसी प्रकार से कोई विकास नहीं हुआ था, इस बात को अब लाखों साल हो गए। स्थलांतरण के कई हजार साल बाद उसने *नागरी सभ्यता* का विकास किया जैसे भारत में *सिंधु सभ्यता* थी। सभी लोग अफ्रिका से स्थलांतरीत हुए है यह बात अगर आज मानकर चलते है तो ना ही हमारा भारत देश होगा और ना हमारा देशप्रेम...! बाबासहाब डा.अंबेडकरजी ने कहा था के 'मै प्रथम भारतीय हूँ और अंत में भी भारतीय ही रहूँगा', इस बात से यह सिध्द होता है के *देश* एक *नागरी सभ्यता* है।
*United Nation Organisation* जिसमें 193 देश शामिल है, उन्होंने सप्टेबर २००७ को *९अगस्त* यह *World Indigenous Day* ( *विश्व मुलनिवासी दिवस* ) घोषित कर दिया है। क्या *विश्व मुलनिवासी दिवस* मनानेवाले 193 देशों के लोगों को यह पता नहीं है के सारे लोग अफ्रिका से स्थलांतरीत हुए है??? या केवल ब्राम्हण और ब्राम्हणों के दलाल ही इस बात को जानते है????
*ऋग्वेद के १०वें मंडल* की ९०ऋचा में लिखा है के ब्राम्हण(आर्य, देव) विदेश से भारत में आयें है, वि.दा.सावरकर ने *६सुवर्ण पन्ने* इस किताब में लिखा है के ब्राम्हण विदेशी है, बाल गंगाधन तिलक ने *आर्टीक्ट होम इन द वेदाज* में लिखा है वे विदेशी है, माधव गोलवलकर ने *बंच ऑफ थॉट* में लिखा है, पं.राहुल सांस्कृत्यायन ने *वोल्गा टु गंगा* में लिखा है, पं.नेहरु ने *डिस्कवरी ऑफ इंडिया* में लिखा है के वे विदेश से भारत में आये है, अब जब सारे ब्राम्हण खुद को विदेशी बोल रहे है, लिख रहे है, घोषित कर रहे है तो ब्राम्हणों के दलाल-भडवे क्यों चिल्ला रहे है के ब्राम्हम विदेशी नहीं है...??? क्या ऐसा करने के लिए उन दलालों को ब्राम्हणों से कोई इनाम दिया जा रहा है...???
ब्राम्हण विदेशी है इसका वैज्ञानिक सबुत *२१ मई २००१* के *Times of India* के पहले पन्नेपर छपकर आया *माईकल बामशाद* की *DNA* पर आधारीत रिपोर्ट... जिसमें माईकल बामशाद ने *जाति व्यवस्था* के कारणों के वैज्ञानिक तरीके से दुनिया के सामने रखा। उनके संशोधन के मुताबिक ब्राम्हणों का *DNA* भारत में रहनेवाले *OBC,SC,ST* से ९९.९९% मेल नहीं खाता। इसलिए विज्ञान ने यह सिध्द कर दिया के ब्राम्हण यहाँ के मुलनिवासी नहीं है, वे विदेशी है। *माईकल बामशाद* का यह संशोधन *Nature* नाम के अंतरराष्ट्रीय मॅग्जिन में आया। उसे पढकर अमरिका में रहनेवाले *जय दिक्षित और प्रताप जोशी* इन दो ब्राम्हणों ने उसपर और ज्यादा संशोधन किया और एक किकाब लिखकर कहा के भारत के ब्राम्हणों का DNA रशिया के पास जो काला समुद्र है वहाँ आक्शीमोजी(युरेशिया) नाम का प्रांत है, वहाँ रहनेवाली *रोमुआ* नाम की प्रजाति से मिलता है। ब्राम्हण *DNA* का विरोध खुद नहीं कर सकता इसलिए समाज में संभ्रम निर्माण करने के लिए वो दलाल एवं भजवों का साहारा लेता है। हम अगर ब्राम्हणों को विदेशी बोल रहे है तो ब्राम्हणों ने सामने आकर सिध्द कर देना चाहिए के वे विदेशी नहीं है, लेकिन यहाँ वे खुद सामने नहीं आ रहे।
*माईकल बामशाद* ने *DNA* के आधारपर ही यह सिध्द कर दिया के ब्राम्हण भारत पर आक्रमण करने के ही उद्देश से आये थे। *DNA* ने सिध्द कर दिया के ब्राम्हणों की घर की महिलाए और शुद्र-अतिशुद्र के घर की महिलाओं का *DNA* मिलता है, यह इस बात का प्रमाण है के ब्राम्हणों ने अपने साथ महिलाए नहीं लायी थी। आज भी युध्द करने के लिए महिलाओं को कुदरती तैरपर बाधा माना जाता है इसलिए ब्राम्हणों ने अपनी माँ, बेटी, पत्नी, बहु, बहन को भी शुद्र-अपवित्र घोषित कर दिया।
सन १९६० के बाद विज्ञान में क्रांतिकारी बदलाव आयें, लेकिन बाबासहाब डा.अंबेडकरजी का महापरिनिर्वाण १९५६ में ही हो गया था। अगर बाबासहाब के समयपर ही *DNA* का संशोधन होता तो वे भी ब्राम्हणों का असली *विदेश चेहरा* दुनिया के सामने उजागर कर देते।
*Annihilation of Caste* में बाबासहाब लिखते है के *आंतरजातिय विवाह और आंतरजातिय भोज* यह *जातिव्यवस्था* ध्वस्त करने का वास्तविक तरीका नहीं है। *जातिव्यवस्था* को खत्म करने के लिए उन सभी जातियों को एक *नया नाम* दो जिससे उनकी नई पहचान बनेगी। बाबासहाब ने यह काम *संविधान* के माध्यम से कुछ हद तक पुरा किया। उन्होंने ब्राम्हणोंद्वारा बनाई *६७४३* जातियों को *तीन नए नाम* दिए गए, जिसे आज हम *OBC,SC,ST* के नाम से जानते है। सभी धर्म के लोगों को जोडने के लिए *Minorities* यह नया नाम, नई पहचान दी। आज हमें हमारे महापुरुषों का अधुरा कार्य अगर आगे बढाना है तो बाबासहाब ने संगठित किए हुए *OBC,SC,ST,MINORITIES,LADISE* को एक नया नाम देना होगा जिससे उनकी एक नई पहचान बने। इसलिए *बामसेफ* ने राष्ट्रपिता म.फुलेजी के द्वारा दी गई *मुलनिवासी* संकल्पना का स्विकार किया और उसे समाज में प्रस्थापित किया।
ब्राम्हणों के दलाल समाज का मनोबल गिराने तथा समाज को विभाजीत करने के लिए ‘दलित' इस गैरसंविधानिक शब्द का इस्तेमाल करते है।इस शब्द को इस्तेमाल करनेपर पाबंदी लगाते हुए *मुंबई उच्च न्यायालय* ने सभी प्रशासकीय संस्थाओं को नोटीस जारी किया है के यह शब्द संविधान में नहीं है और *संविधान निर्माता बाबासहाब डा.अंबेडकर* भी इस शब्द के बहोत ज्यादा विरोधी थे, इसलिए इस शब्द का उपयोग ना करें। ‘हरिजन' और ‘दलित' यह दोनों भी शब्द काँग्रेस की देन है जो सन्मानजनक नहीं है। बाबासहाब के बाद *बाबु जगजीवन राम* के माध्यम से काँग्रेस ने यह शब्द प्रचारीत किया और बहुजन के नाम से संगठित हो रहे समाज को पुन: विभाजीत करने की नाकाम कोषिशे चल रही है।
आज बहुजन समाज में *बामसेफ जितना विशाल राष्ट्रीय संगठन* सारे देश में नहीं है। यह बात ब्राम्हणों के लिए बहोत दुखदाई है, क्योंकि वे अच्छी तरह जानते है के उनकी व्यवस्था ध्वस्थ करने की विचारधारा केवल और केवल *बासमेफ* के पास ही है। इसलिए ब्राम्हणों ने उनके दलालों को समाज में संभ्रम निर्माण करने के कामपर लगाया है।
आज की तारीख में *शासन-प्रशासन-न्यायपालिका-मिडिया* इन *लोकतंत्र के स्तंभोपर* ब्राम्हणों का कब्जा है। ब्राम्हण भारत का शासक बनकर मुलनिवासी बहुजनों को गुलाम बनाये रखने के लिए निरंतरता से कार्यरत है, हम तो केवल *ब्राम्हणों के षडयंत्र* समाज को बताकर मुलनिवासी बहुजन समाज को सतर्क कर रहै है तो हम ब्राम्हणों के विरोद में द्वेश या घृणा फैला रहे है ऐसा कैसे कहा जा सकता है। हम तो केवल बता रहे है के ब्राम्हण हमारे समाज के विरोध में क्या-क्या षडयंत्र कर रहा है।
*बामसेफ* अब केवल *राष्ट्रीय संगठन* नहीं है, अब यह *अंतरराष्ट्रीय संगठन* बन गया है।  सन १९१६ को बाबासहाब ने लंदन स्कुल ऑफ इकॉनॉमिक्स में प्रवेश किया था, उस क्रांतिकारी घटना को २०१६ में १००साल पुरे हो गे है। इस उपलक्ष में *बामसेफ* ने दि.२३जुलाई २०१६ को *लंदन स्कुल ऑफ इकॉनॉमिक्स* के हॉल में *World Conference* का आयोजन किया था। जिसमें भारत से और दुनिया के लगभग २० देशों से लोग सहभागी हुए थे। लंदन में जाकर ऐसी *World Conference* लेनेवाला *बामसेफ* यह भारत का पहला समाजिक संगठन बना है जिसने अपने बलबुतेपर इतनी बडी काँफरन्स आयोजित की और सपलता पुर्वक संपन्न की है।
मुलनिवासी बहुजन महापुरुषों की विचारधारा न केवल भारत की है बल्कि वह विश्व की पुँजी है जिसे हमें विदेशों में भी प्रचारीत करनी है। ब्राम्हण और उनके दलाल मुलनिवासी बहुजन महापुरुषों की विचारधारा एक जाति में बंदिस्त करना चाहते है, ऐसे ब्राम्हणवादीयों से समाज को सतर्क करना चाहिए।

*जय मुलनिवासी*

कौन है देशी (मूलनिवासी) और कौन है विदेशी? ??
 एक साधारण या अनपढ़ व्यक्ति भी बता सकता है कि यदि भारत का कोई व्यक्ति अमेरिका में रहने लग जाए तो वह इंडियन या भारतीय ही कहलाया जायेगा अर्थात अमेरिका में भारत के लोगों को विदेशी ही कहा जायेगा। इसी प्रकार यदि कोई अमेरिका का व्यक्ति यदि भारत में रहने लग जाये तो भारत में वह व्यक्ति विदेशी ही या अमेरिकन कहा जाता है ! ठीक इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति ईरान या जर्मनी से आकर भारत में रहने लग जाये, तो वह भी विदेशी ही कहा जायेगा। भले ही वह कितने दिनों से ही क्यों न रह रहा हो।      
1-The Arctic Home At The Vedas बालगंगाधर तिलक (ब्राह्मण) के द्वारा लिखी पुस्तक में मानते है कि आर्य बाहर आए हुए लोग है ।
2- जवाहर लाल नेहरु (कश्मीरी पंडित) ने अपनी किताब Discovery of India में लिखा है कि आर्य मध्य एशिया से आये हुए लोग हैं।
3. वोल्गा टू गंगा में “राहुल सांस्कृतयान” (बनारस के केदारनाथ पाण्डेय ब्राहम्ण) ने लिखा है कि आर्य बाहर से आये हुए लोग है और यह भी लिखा कि आर्य लोग वोल्गा से गंगा तट (भारत) तक कैसे आए।
4- विनायक सावरकर (ब्राम्हण) ने सहा सोनरी पाने “इस मराठी किताब में लिखा कि आर्य भारत के बाहर से आये हुए लोग है।
5. इक़बाल (“कश्मीरी पंडित ”) जिसने “सारे जहा से अच्छा” गीत लिखा था ने भी लिखा कि आर्य बाहर से आए  हुए लोग है।
6. मोहन दास करम चन्द गांधी (वेश्य) ने 1894 में दक्षिणी अफ्रीका के विधान सभा में लिखे एक पत्र के अनुसार कहा था कि हम भारतीय होने के साथ-साथ युरोशियन है ! हमारी नस्ल एक ही है इसलिए अग्रेज शासक से अच्छे बर्ताव की अपेक्षा रखते है।
7. ब्रह्म समाज के नेता सुब चन्द्र सेन ने 1877 में कलकत्ता की एक सभा में कहा था कि अंग्रेजो के आने से हम सदियों से बिछड़े चचेरे भाइयों का (आर्य ब्रह्मण और अंग्रेज ) पुनर्मिलन हुआ है।
               उपरोक्त तत्थ जो हमारे द्वारा तैयार नहीं किये गए बल्कि स्वयम (ब्राह्मणों) आर्यों द्वारा लिखे गए हैं !  इन तत्थो से प्रमाणित होता है कि भारत में रहने वाले आर्य लोग विदेशी हैं !
इसके आलावा ज्ञानवर्धन कीजिये एक और महत्वपूर्ण तत्थ से :-
               🏿बहुत महत्वपूर्ण तत्थ- अमेरिका के Salt lake City स्थित युताहा विश्वविधालय (University of Utaha’ USA) के मानव वंश विभाग के वैज्ञानिक माइकल बमशाद और आंध्र प्रदेश के विश्व विद्यापीठ विशाखा पट्टनम के Anthropology विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा सयुक्त तरीको से 1995 से 2001 तक लगातार 6 साल तक भारत के विविध जाति-धर्मो और विदेशी देश के लोगो के खून पर किये गये DNA के परिक्षण से एक तैयार की। जिसमें बताया गया कि भारत देश की ब्राह्मण जाति के लोगों का DNA 99:96 %, क्षत्रिय जाति के लोगों का DNA 99.88% और वेश्य-बनिया जाति के लोगो का DNA 99:86% मध्य यूरेशिया के पास जो “काला सागर ’Blac Sea” है। वहां के लोगो से मिलता है।
               इस रिपोर्ट से यह निष्कर्ष निकालता है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य-बनिया विदेशी लोग है और बाकी एस०सी०, एस०टी० और ओबीसी में बंटे सब लोग (कुल 6743 जातियां) और भारत के धर्म-परिवर्तित मुसलमान, सिख, बौद्ध, ईसाई आदि लोगों का DNA आपस में मिलता है। इससे यह भी पता चलता है कि एस०सी०, एस०टी०, ओबीसी और धर्म-परिवर्तित लोग एक ही वंश के लोग है। 
🏿महत्वपूर्ण प्रश्न:--अब ऐसे में हम सभी के सामने प्रश्न उठता है कि जब भारत में रहने वाले आर्य लोग तो विदेशी है। तो .....फिर देशी कौन है?
अर्थात भारत देश के मूलनिवासी      कौनहैं ?                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                     
उपरोक्त तत्थों के आधार पर हमारा कहना है कि भारत में रहने वाले आर्य लोग जब विदेशी हैं अर्थात यूरेशियन हैं, तो आर्यो के आलावा बाकी सब लोग {एस०सी०, एस०टी०, ओबीसी और धर्म-परिवर्तित} देशी हैं अर्थात भारत के मूलनिवासी हैं।
अब इसमें किसी को भी क्या आपत्ति हो सकता है । "जय मुलनीवासी"अंग्रेजी शब्द "indigenous peoples" का हिन्दी शब्द है।जिसका अर्थ होता है "मूलनिवासी।"आप जितना "मूलनिवासी" शब्द का प्रचार करोगे,उतना दुश्मन का विदेशीपन उजागर होगा।
‬ Leader तो बहुत होते हें
लेकिन leadership बहुत कम लोगों में होती है। हमारे लोग तो  Leader भी नहीं है, उन्हें तो ब्राहमणों  ने हमारे लोगों को  Lader बना रखा है । दलाल और भड़वे बनाने का काम ब्राम्हण कर ही रहे है। जो साथी समाज में  परिवर्तन लाना चाहते है ! वही साथी संगठन को आगे बढ़ा सकते है । जो लोग पद एव प्रतिष्ठा के लिए मुवमेन्ट से जुड़े है, वो महासंघ को  आगे बढ़ाने में सहायक नही हो सकते है ।
 याद रखें बहुजन मुवमेन्ट सामाजिक परिवर्तन का आंदोलन है।जय मंडल । जय मूलनिवासी ।। जागो और  जगाओ मूलनिवासी ।।।