पढा-लिखा होना जागृत होना दोनों में अंतर है।
किताबों को पढ लेने से, या डिग्रियां हासिल कर लेने से कोई जागृत नहीं कहा जा सकता, हर शिक्षित व्यक्ति जागृत ही हो, ऐसा नहीं है।
जागृति का प्रथम सिध्दांत है,
अपने दोस्त की पहचान होना।
जागृति का दूसरा सिध्दांत है,
अपने दुश्मन की पहचान होना।
जागृति का तीसरा सिध्दांत है,
अपने ताकत और कमजोरी मालूम होना।
जागृति का चौथा सिध्दांत है,
दुश्मन की ताकत और कमजोरी मालूम होना। और
जागृति का पांचवां सिध्दांत है,
अपने महापुरुषों का इतिहास मालूम होना।
यह पांच बातें अगर आपको मालूम है, और आप अनपढ़ भी हो फिर आप जागृत कहे जा सकते हो। और अगर आपको ये पांच बातें नहीं मालूम है, और आप शिक्षित भी हो फिर भी आप जागृत नहीं हो।
आप डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, प्रोफेसर, IPS, IAS, हो सकते हो मगर आप जागृत नहीं कहे जा सकते।
शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक जागृति बहुत जरूरी है, समाज उत्धान के लिए। हमारे पढें लिखें अधिकारी कर्मचारी, PHD Holder उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति को हमारा सही इतिहास नहीं पता। पता नहीं होना यह बुरी बात नहीं है परन्तु जब पता चल जाये कि मैंने सब कुछ पढा जो लोगों ने मुझे पढाया परन्तु मुझे मेरे महापुरुषों का इतिहास नहीं पता। हमारे महापुरुषों के जीवन संघर्ष और बलिदान। जिसकी वजह से हमें शिक्षा लेने का अधिकार शिक्षा देने का अधिकार सम्पत्ति रखने का अधिकार वस्त्र धारण का अधिकार मिला अगर यह जानकारी पता चल जाये उसके बाद भी हमारा आदमी सिर्फ खाने पिनें बीबी बच्चों को पालने घर गृहस्थी जमाने सम्पत्ति इक्ढा करना ही जीवन का उद्देश्य रखता है। तो तुम्हारा तुम्हारे बच्चों का तुम्हारे जीवन का भविष्य सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे समाज का दुश्मन ही तय करेगा हो सकता है कि तुम बच जाओं परन्तु तुम्हारी आने वाली पीढ़ियों कि गुलामी के जिम्मेदार तुम खुद होगें।
Sunday, February 26, 2017
पढा-लिखा होना जागृत होना दोनों में अंतर है।
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