Tuesday, January 30, 2018

भगवा ध्वज यह ब्राम्हणो का नही है

भगवा ध्वज यह ब्राम्हणो का नही है यह तो इसी देश के मूलनिवासियों का है।ब्राम्हणो ने भगवा शब्द और रंग चुराया है।भगवा यह पाली भाषा का है।इसके मायने इस तरह है -भग यानि विकार वान यानि नष्ठ करना। तथागत बुद्ध ने सभी विकारों को नष्ठ किया इसलिए उन्हें भगवान कहते है। भगवान यानि त्यागी व्यक्ति। ब्राम्हणो में एक भी त्यागी व्यक्ति पैदा नही हुआ बल्कि ब्राम्हणो के सभी देवता भोगी है।
शंकराचार्य ब्राम्हण ने बौद्ध धर्म को खत्म करने के लिए ब्राम्हणो को बौद्ध भिक्खु वो के भैष में ओरिजनल बौद्ध भिक्खु वो के अंदर छोड़ा और उसके माध्यम से ओरिजनल बौद्ध भिक्खुवो का कत्ले आम किया।इसलिए शंकराचार्य को प्रछन्न बौद्ध कहा जाता था । उसने यह देखा की बौद्ध धर्म प्रचारकको की हत्याएं तो की है मगर आम जनता में भगवा रंग और शब्द तथागत बुद्ध और बौद्ध भिक्खु वो के कारण है तो भोगी ब्राम्हणो ने उस रंग को अपना लिया उसका ब्राम्हणीकरण किया और बाद में सभी भोगी ब्राम्हण भगवा वस्र पहनने लगे। अब लोगो को लगता है कि यह रंग ब्राम्हणो का है यह बात गलत है।इसका कॉपी राइट मूलनिवासियों के पास है यानि हमारे पास है।आरएसएस के पास नही ।
छत्रपति शिवाजी महाराज और संतो का भी झंडा भगवे रंग का था क्यों कि वे तथागत बुद्ध की ही विरासत चला रहे थे।छत्रपति शिवाजी महाराज ने दूसरा राज्याभिषेक शाक्त यानि बुद्ध पद्धति से 24 सितम्बर 1674 को किया था।छात्रपतिं संभाजी महाराज शाक्त यानि शाक्य यानि बुद्ध धम्म से इतने  प्रभावित हुए की उन्होंने बुद्धभूषनम नामक काव्य ही लिख डाला।अपना प्रेरणास्रोत तथागत बुद्ध को बनाया । इसीलिए पेशवा ब्राम्हणो ने दोनों छात्रपतियो की षड्यन्त्र से हत्याएं की।और हत्यावो का पाप छुपाने के लिए मुस्लिम विरोधी इतिहास बनाया जो वैसा नही था ।ब्राम्हण बहुत ही षड्यन्त्रकारी होते है ।
  आरएसएस,बीजेपी ने बुद्ध से संघ शब्द चुराया।भगवा रंग चुराया।बुद्ध से संबंधित कमल है उसे भी चुराया। ब्राम्हण चोर भी है ,आतंकवादी भी है । सावरकर ने कहा है कि ब्राम्हण अल्पसंख्य होने के बावजूद बहुसंख्य लोगो पर राज कैसे कर पाया क्यों कि उन्होंने असमिलेशन किया यानि जो जो अच्छी अच्छी बातें थी उसे चुराई और बाद में उसे अपनी घोषित की ।समन्वय किया!गोलवलकर के अनुसार ब्राम्हण दीर्घकाल राज्य क्यों कर पाया ?क्यों कि ब्राम्हणो ने बहुजनो के महापुरुषों की हत्याएं की बाद में उसे ही अपना लिया जैसे कि बुद्ध को ब्राम्हणो ने विष्णु का अवतार घोषित किया।इसे ही गोललकर संस्कृतायझेशन कहा ।इसे ही ब्राम्हणीकरण कहते है।सीधी भाषा मे अगर कहा जाए तो किसी एक पेड़ के ऊपरी हिस्से को काटकर उसके जगह दूसरे पेड़ की टहनी को लगा देना इसे कलम करना कहते है। यानि उस पेड़ का निचला हिस्सा दूसरे पेड़ का और ऊपर का दूसरा मगर फल ऊपर के हिस्से का आता है। फसाद और आतंक के लिए बहुजन लड़को का इस्तेमाल किया जाता है क्यों कि उनके दिमाग को कलम किया गया है ।इसलिए फसाद ब्राम्हण नही मरता ,बहुजन मरता है ।
इसलिए अब उत्तर प्रदेश में भगवे रंग को इसीलिए  ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि sc, st ,ओबीसी का धार्मिक ध्रुवीकरण करके मुस्लिमो के खिलाफ माहौल बनाया जाए ।ताकि 2019 के चुनाव में ब्राम्हणो को फिर से evm घोटाला करने का अवसर मिले और लोगो का ध्यान डायवर्ट किया जाए।
भारत मे भगवा शब्द बहुजनो का है इसे अब ब्राम्हणो से छीनो।क्यों कि ब्राम्हणो को तो काला रंग अच्छा लगता है।आरएसएस के ब्राम्हण काली टोपी जो पहनते है।क्यों?शायद उन्हें पहले ही पता है कि वे काले समुंदर के किनारे यूरेशिया देश के वे निवासी है। उसके याद में वे काली टोपी पहनते है ।और ब्राम्हण कौवे को भी बहुत मानते है क्यों कि वह भी काला है । ब्राम्हणो ने काला झंडा अपना लेना चाहिए और जल्द से जल्द भारत छोड़के यूरेशिया यानि अपने मातृभूमि भाग जाना चाहिए।नही तो बामसेफ,भारत मुक्ति मोर्चा वाले लोग उन्हें भारत से भागने देने वाले नही है बल्कि उन्हें गुलाम प्रजा के तौर पर भारत मे रखने वाले है। क्यों कि डीएनए अनुसंधान के अनुसार ब्राम्हण के नागरिक नही है ।
बोलो 85 जय मूलनिवासी!!!
(किसी को बुरा लगे तो भी अपने बुद्धी और विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए ,ब्राम्हणो के मिथ्या बातो में नही फसना चाहिए।यह देश हमारे बाप जादावो का है विदेशी मोहन भागवत,राहुल गांधी,और विदेशी ब्राम्हणो का नही है !! जय मूलनिवासी।जय मूलनिवासी राष्ट्र!!!मूलनिवासी राष्ट्रवाद ही हमारा राष्ट्रवाद है!!!)
प्रोफेसर विलास खरात।
डायरेक्टर डॉ बाबासाहब आंबेडकर रिसर्च सेंटर,नई दिल्ली।

No comments:

Post a Comment