Monday, January 8, 2018

कौन है देशी (मूलनिवासी) और कौन है विदेशी? ??

कौन है देशी (मूलनिवासी) और कौन है विदेशी? ??

 *मुलनिवासी* यह संकल्पना राष्ट्रपिता म.फुलेजी ने बनाई है, वे ब्राम्हणों को *इराणी आर्य* कहते है। *बामसेफ* तो केवल इस संकल्पना का प्रचार-प्रसार कर उसे प्रस्थापित करने का काम कर रहा है।
अफ्रिका से आदिमानव स्थलांतरीत हुआ था, जिसका किसी प्रकार से कोई विकास नहीं हुआ था, इस बात को अब लाखों साल हो गए। स्थलांतरण के कई हजार साल बाद उसने *नागरी सभ्यता* का विकास किया जैसे भारत में *सिंधु सभ्यता* थी। सभी लोग अफ्रिका से स्थलांतरीत हुए है यह बात अगर आज मानकर चलते है तो ना ही हमारा भारत देश होगा और ना हमारा देशप्रेम...! बाबासहाब डा.अंबेडकरजी ने कहा था के 'मै प्रथम भारतीय हूँ और अंत में भी भारतीय ही रहूँगा', इस बात से यह सिध्द होता है के *देश* एक *नागरी सभ्यता* है।
*United Nation Organisation* जिसमें 193 देश शामिल है, उन्होंने सप्टेबर २००७ को *९अगस्त* यह *World Indigenous Day* ( *विश्व मुलनिवासी दिवस* ) घोषित कर दिया है। क्या *विश्व मुलनिवासी दिवस* मनानेवाले 193 देशों के लोगों को यह पता नहीं है के सारे लोग अफ्रिका से स्थलांतरीत हुए है??? या केवल ब्राम्हण और ब्राम्हणों के दलाल ही इस बात को जानते है????
*ऋग्वेद के १०वें मंडल* की ९०ऋचा में लिखा है के ब्राम्हण(आर्य, देव) विदेश से भारत में आयें है, वि.दा.सावरकर ने *६सुवर्ण पन्ने* इस किताब में लिखा है के ब्राम्हण विदेशी है, बाल गंगाधन तिलक ने *आर्टीक्ट होम इन द वेदाज* में लिखा है वे विदेशी है, माधव गोलवलकर ने *बंच ऑफ थॉट* में लिखा है, पं.राहुल सांस्कृत्यायन ने *वोल्गा टु गंगा* में लिखा है, पं.नेहरु ने *डिस्कवरी ऑफ इंडिया* में लिखा है के वे विदेश से भारत में आये है, अब जब सारे ब्राम्हण खुद को विदेशी बोल रहे है, लिख रहे है, घोषित कर रहे है तो ब्राम्हणों के दलाल-भडवे क्यों चिल्ला रहे है के ब्राम्हम विदेशी नहीं है...??? क्या ऐसा करने के लिए उन दलालों को ब्राम्हणों से कोई इनाम दिया जा रहा है...???
ब्राम्हण विदेशी है इसका वैज्ञानिक सबुत *२१ मई २००१* के *Times of India* के पहले पन्नेपर छपकर आया *माईकल बामशाद* की *DNA* पर आधारीत रिपोर्ट... जिसमें माईकल बामशाद ने *जाति व्यवस्था* के कारणों के वैज्ञानिक तरीके से दुनिया के सामने रखा। उनके संशोधन के मुताबिक ब्राम्हणों का *DNA* भारत में रहनेवाले *OBC,SC,ST* से ९९.९९% मेल नहीं खाता। इसलिए विज्ञान ने यह सिध्द कर दिया के ब्राम्हण यहाँ के मुलनिवासी नहीं है, वे विदेशी है। *माईकल बामशाद* का यह संशोधन *Nature* नाम के अंतरराष्ट्रीय मॅग्जिन में आया। उसे पढकर अमरिका में रहनेवाले *जय दिक्षित और प्रताप जोशी* इन दो ब्राम्हणों ने उसपर और ज्यादा संशोधन किया और एक किकाब लिखकर कहा के भारत के ब्राम्हणों का DNA रशिया के पास जो काला समुद्र है वहाँ आक्शीमोजी(युरेशिया) नाम का प्रांत है, वहाँ रहनेवाली *रोमुआ* नाम की प्रजाति से मिलता है। ब्राम्हण *DNA* का विरोध खुद नहीं कर सकता इसलिए समाज में संभ्रम निर्माण करने के लिए वो दलाल एवं भजवों का साहारा लेता है। हम अगर ब्राम्हणों को विदेशी बोल रहे है तो ब्राम्हणों ने सामने आकर सिध्द कर देना चाहिए के वे विदेशी नहीं है, लेकिन यहाँ वे खुद सामने नहीं आ रहे।
*माईकल बामशाद* ने *DNA* के आधारपर ही यह सिध्द कर दिया के ब्राम्हण भारत पर आक्रमण करने के ही उद्देश से आये थे। *DNA* ने सिध्द कर दिया के ब्राम्हणों की घर की महिलाए और शुद्र-अतिशुद्र के घर की महिलाओं का *DNA* मिलता है, यह इस बात का प्रमाण है के ब्राम्हणों ने अपने साथ महिलाए नहीं लायी थी। आज भी युध्द करने के लिए महिलाओं को कुदरती तैरपर बाधा माना जाता है इसलिए ब्राम्हणों ने अपनी माँ, बेटी, पत्नी, बहु, बहन को भी शुद्र-अपवित्र घोषित कर दिया।
सन १९६० के बाद विज्ञान में क्रांतिकारी बदलाव आयें, लेकिन बाबासहाब डा.अंबेडकरजी का महापरिनिर्वाण १९५६ में ही हो गया था। अगर बाबासहाब के समयपर ही *DNA* का संशोधन होता तो वे भी ब्राम्हणों का असली *विदेश चेहरा* दुनिया के सामने उजागर कर देते।
*Annihilation of Caste* में बाबासहाब लिखते है के *आंतरजातिय विवाह और आंतरजातिय भोज* यह *जातिव्यवस्था* ध्वस्त करने का वास्तविक तरीका नहीं है। *जातिव्यवस्था* को खत्म करने के लिए उन सभी जातियों को एक *नया नाम* दो जिससे उनकी नई पहचान बनेगी। बाबासहाब ने यह काम *संविधान* के माध्यम से कुछ हद तक पुरा किया। उन्होंने ब्राम्हणोंद्वारा बनाई *६७४३* जातियों को *तीन नए नाम* दिए गए, जिसे आज हम *OBC,SC,ST* के नाम से जानते है। सभी धर्म के लोगों को जोडने के लिए *Minorities* यह नया नाम, नई पहचान दी। आज हमें हमारे महापुरुषों का अधुरा कार्य अगर आगे बढाना है तो बाबासहाब ने संगठित किए हुए *OBC,SC,ST,MINORITIES,LADISE* को एक नया नाम देना होगा जिससे उनकी एक नई पहचान बने। इसलिए *बामसेफ* ने राष्ट्रपिता म.फुलेजी के द्वारा दी गई *मुलनिवासी* संकल्पना का स्विकार किया और उसे समाज में प्रस्थापित किया।
ब्राम्हणों के दलाल समाज का मनोबल गिराने तथा समाज को विभाजीत करने के लिए ‘दलित' इस गैरसंविधानिक शब्द का इस्तेमाल करते है।इस शब्द को इस्तेमाल करनेपर पाबंदी लगाते हुए *मुंबई उच्च न्यायालय* ने सभी प्रशासकीय संस्थाओं को नोटीस जारी किया है के यह शब्द संविधान में नहीं है और *संविधान निर्माता बाबासहाब डा.अंबेडकर* भी इस शब्द के बहोत ज्यादा विरोधी थे, इसलिए इस शब्द का उपयोग ना करें। ‘हरिजन' और ‘दलित' यह दोनों भी शब्द काँग्रेस की देन है जो सन्मानजनक नहीं है। बाबासहाब के बाद *बाबु जगजीवन राम* के माध्यम से काँग्रेस ने यह शब्द प्रचारीत किया और बहुजन के नाम से संगठित हो रहे समाज को पुन: विभाजीत करने की नाकाम कोषिशे चल रही है।
आज बहुजन समाज में *बामसेफ जितना विशाल राष्ट्रीय संगठन* सारे देश में नहीं है। यह बात ब्राम्हणों के लिए बहोत दुखदाई है, क्योंकि वे अच्छी तरह जानते है के उनकी व्यवस्था ध्वस्थ करने की विचारधारा केवल और केवल *बासमेफ* के पास ही है। इसलिए ब्राम्हणों ने उनके दलालों को समाज में संभ्रम निर्माण करने के कामपर लगाया है।
आज की तारीख में *शासन-प्रशासन-न्यायपालिका-मिडिया* इन *लोकतंत्र के स्तंभोपर* ब्राम्हणों का कब्जा है। ब्राम्हण भारत का शासक बनकर मुलनिवासी बहुजनों को गुलाम बनाये रखने के लिए निरंतरता से कार्यरत है, हम तो केवल *ब्राम्हणों के षडयंत्र* समाज को बताकर मुलनिवासी बहुजन समाज को सतर्क कर रहै है तो हम ब्राम्हणों के विरोद में द्वेश या घृणा फैला रहे है ऐसा कैसे कहा जा सकता है। हम तो केवल बता रहे है के ब्राम्हण हमारे समाज के विरोध में क्या-क्या षडयंत्र कर रहा है।
*बामसेफ* अब केवल *राष्ट्रीय संगठन* नहीं है, अब यह *अंतरराष्ट्रीय संगठन* बन गया है।  सन १९१६ को बाबासहाब ने लंदन स्कुल ऑफ इकॉनॉमिक्स में प्रवेश किया था, उस क्रांतिकारी घटना को २०१६ में १००साल पुरे हो गे है। इस उपलक्ष में *बामसेफ* ने दि.२३जुलाई २०१६ को *लंदन स्कुल ऑफ इकॉनॉमिक्स* के हॉल में *World Conference* का आयोजन किया था। जिसमें भारत से और दुनिया के लगभग २० देशों से लोग सहभागी हुए थे। लंदन में जाकर ऐसी *World Conference* लेनेवाला *बामसेफ* यह भारत का पहला समाजिक संगठन बना है जिसने अपने बलबुतेपर इतनी बडी काँफरन्स आयोजित की और सपलता पुर्वक संपन्न की है।
मुलनिवासी बहुजन महापुरुषों की विचारधारा न केवल भारत की है बल्कि वह विश्व की पुँजी है जिसे हमें विदेशों में भी प्रचारीत करनी है। ब्राम्हण और उनके दलाल मुलनिवासी बहुजन महापुरुषों की विचारधारा एक जाति में बंदिस्त करना चाहते है, ऐसे ब्राम्हणवादीयों से समाज को सतर्क करना चाहिए।

*जय मुलनिवासी*

कौन है देशी (मूलनिवासी) और कौन है विदेशी? ??
 एक साधारण या अनपढ़ व्यक्ति भी बता सकता है कि यदि भारत का कोई व्यक्ति अमेरिका में रहने लग जाए तो वह इंडियन या भारतीय ही कहलाया जायेगा अर्थात अमेरिका में भारत के लोगों को विदेशी ही कहा जायेगा। इसी प्रकार यदि कोई अमेरिका का व्यक्ति यदि भारत में रहने लग जाये तो भारत में वह व्यक्ति विदेशी ही या अमेरिकन कहा जाता है ! ठीक इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति ईरान या जर्मनी से आकर भारत में रहने लग जाये, तो वह भी विदेशी ही कहा जायेगा। भले ही वह कितने दिनों से ही क्यों न रह रहा हो।      
1-The Arctic Home At The Vedas बालगंगाधर तिलक (ब्राह्मण) के द्वारा लिखी पुस्तक में मानते है कि आर्य बाहर आए हुए लोग है ।
2- जवाहर लाल नेहरु (कश्मीरी पंडित) ने अपनी किताब Discovery of India में लिखा है कि आर्य मध्य एशिया से आये हुए लोग हैं।
3. वोल्गा टू गंगा में “राहुल सांस्कृतयान” (बनारस के केदारनाथ पाण्डेय ब्राहम्ण) ने लिखा है कि आर्य बाहर से आये हुए लोग है और यह भी लिखा कि आर्य लोग वोल्गा से गंगा तट (भारत) तक कैसे आए।
4- विनायक सावरकर (ब्राम्हण) ने सहा सोनरी पाने “इस मराठी किताब में लिखा कि आर्य भारत के बाहर से आये हुए लोग है।
5. इक़बाल (“कश्मीरी पंडित ”) जिसने “सारे जहा से अच्छा” गीत लिखा था ने भी लिखा कि आर्य बाहर से आए  हुए लोग है।
6. मोहन दास करम चन्द गांधी (वेश्य) ने 1894 में दक्षिणी अफ्रीका के विधान सभा में लिखे एक पत्र के अनुसार कहा था कि हम भारतीय होने के साथ-साथ युरोशियन है ! हमारी नस्ल एक ही है इसलिए अग्रेज शासक से अच्छे बर्ताव की अपेक्षा रखते है।
7. ब्रह्म समाज के नेता सुब चन्द्र सेन ने 1877 में कलकत्ता की एक सभा में कहा था कि अंग्रेजो के आने से हम सदियों से बिछड़े चचेरे भाइयों का (आर्य ब्रह्मण और अंग्रेज ) पुनर्मिलन हुआ है।
               उपरोक्त तत्थ जो हमारे द्वारा तैयार नहीं किये गए बल्कि स्वयम (ब्राह्मणों) आर्यों द्वारा लिखे गए हैं !  इन तत्थो से प्रमाणित होता है कि भारत में रहने वाले आर्य लोग विदेशी हैं !
इसके आलावा ज्ञानवर्धन कीजिये एक और महत्वपूर्ण तत्थ से :-
               🏿बहुत महत्वपूर्ण तत्थ- अमेरिका के Salt lake City स्थित युताहा विश्वविधालय (University of Utaha’ USA) के मानव वंश विभाग के वैज्ञानिक माइकल बमशाद और आंध्र प्रदेश के विश्व विद्यापीठ विशाखा पट्टनम के Anthropology विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा सयुक्त तरीको से 1995 से 2001 तक लगातार 6 साल तक भारत के विविध जाति-धर्मो और विदेशी देश के लोगो के खून पर किये गये DNA के परिक्षण से एक तैयार की। जिसमें बताया गया कि भारत देश की ब्राह्मण जाति के लोगों का DNA 99:96 %, क्षत्रिय जाति के लोगों का DNA 99.88% और वेश्य-बनिया जाति के लोगो का DNA 99:86% मध्य यूरेशिया के पास जो “काला सागर ’Blac Sea” है। वहां के लोगो से मिलता है।
               इस रिपोर्ट से यह निष्कर्ष निकालता है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य-बनिया विदेशी लोग है और बाकी एस०सी०, एस०टी० और ओबीसी में बंटे सब लोग (कुल 6743 जातियां) और भारत के धर्म-परिवर्तित मुसलमान, सिख, बौद्ध, ईसाई आदि लोगों का DNA आपस में मिलता है। इससे यह भी पता चलता है कि एस०सी०, एस०टी०, ओबीसी और धर्म-परिवर्तित लोग एक ही वंश के लोग है। 
🏿महत्वपूर्ण प्रश्न:--अब ऐसे में हम सभी के सामने प्रश्न उठता है कि जब भारत में रहने वाले आर्य लोग तो विदेशी है। तो .....फिर देशी कौन है?
अर्थात भारत देश के मूलनिवासी      कौनहैं ?                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                     
उपरोक्त तत्थों के आधार पर हमारा कहना है कि भारत में रहने वाले आर्य लोग जब विदेशी हैं अर्थात यूरेशियन हैं, तो आर्यो के आलावा बाकी सब लोग {एस०सी०, एस०टी०, ओबीसी और धर्म-परिवर्तित} देशी हैं अर्थात भारत के मूलनिवासी हैं।
अब इसमें किसी को भी क्या आपत्ति हो सकता है । "जय मुलनीवासी"अंग्रेजी शब्द "indigenous peoples" का हिन्दी शब्द है।जिसका अर्थ होता है "मूलनिवासी।"आप जितना "मूलनिवासी" शब्द का प्रचार करोगे,उतना दुश्मन का विदेशीपन उजागर होगा।
‬ Leader तो बहुत होते हें
लेकिन leadership बहुत कम लोगों में होती है। हमारे लोग तो  Leader भी नहीं है, उन्हें तो ब्राहमणों  ने हमारे लोगों को  Lader बना रखा है । दलाल और भड़वे बनाने का काम ब्राम्हण कर ही रहे है। जो साथी समाज में  परिवर्तन लाना चाहते है ! वही साथी संगठन को आगे बढ़ा सकते है । जो लोग पद एव प्रतिष्ठा के लिए मुवमेन्ट से जुड़े है, वो महासंघ को  आगे बढ़ाने में सहायक नही हो सकते है ।
 याद रखें बहुजन मुवमेन्ट सामाजिक परिवर्तन का आंदोलन है।जय मंडल । जय मूलनिवासी ।। जागो और  जगाओ मूलनिवासी ।।।

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